आ जाओ फिर बुद्धधरा पर
#प्रतियोगिता
विषय -स्वैच्छिक
शीर्षक:-आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर
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धरती जलती अम्बर जलता,
जलता हर परिवेश,
आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर,
दे दो जग-उपदेश। टेक।
छल-कपट त्याग कर चलने की,
निःस्वार्थ सभी से मिलने की,
नव विकास की पगडण्डी पर,
उर स्नेह सुमन के खिलने की।
आ गई घड़ी वह पुण्यमयी,
दो पावन सन्देश।
आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर,
दे दो जग-उपदेश।1।
नहीं किसी को क्षति पहुॅचायें,
समरसता की पौध लगायें,
क्षिति-जल-अम्बर नित आशीषें,
ज्ञान बढ़े अवरोध हटायें।
क्षमा-दया-करुणा आपूरित,
जाये देश-विदेश।
आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर,
दे दो जग-उपदेश।2।
स्वार्थ-मोह का तमस मिटाओ,
परहित अर्पित यश बिखराओ,
शोषित-वंचित रहे ना कोई,
सद्कर्मों का पथ दिखलाओ।
विश्व पूज्य नित रहे हमारा,
प्यारा भारत देश।
आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर,
दे दो जग-उपदेश।3।
रक्त-पिपाशु ,अहम से पूरित,
जबरन बहा रहे हैं शोणित,
अन्तर्चक्षु खोल दो उनके,
कर ज्ञान-गंग-धारा प्रवहित।
धर्म-कर्म से यशोमयी हो,
क्षिति- अम्बर अशेष।
आ जाओ फिर बुद्ध धरा पर,
दे दो जग-उपदेश।4।
रचना मौलिक एवम् अप्रकाशित।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी 'हरीश',
रायबरेली (उप्र) 229010
9415955693,9125908549
Seema Priyadarshini sahay
22-May-2022 07:39 PM
बेहतरीन
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Neelam josi
22-May-2022 12:47 PM
👏👌🙏🏻
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Manzar Ansari
22-May-2022 11:40 AM
बहुत सुन्दर रचना हरीश जी
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